Cover Story by Ajay Singh Gautam, Managing Director, InfoCetroid

क्या नौकरियाँ के लिए खतरे की घंटी है एआई ?

 

परिवर्तन एकमात्र स्थिरता का नियम है और तकनीक के क्षेत्र में इस नियम का बड़ी सटीकता और नियमितता से पालन होता है। तकनीक के क्षेत्र में 20 साल पहले जो चीजें थीं, आज वे नहीं हैं और आज जो हैं, वे 20-25 साल बाद नहीं होंगी। जब कोई नई तकनीक आती है तो उसके साथ कई सारी नई नौकरियां आती हैं, मगर साथ ही पुरानी तकनीक व सिस्टम से जुड़ी नौकरियां जाती भी हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई के साथ यही हो रहा है। कई विशेषज्ञ जॉब मार्केट के संबंध में इसके खतरे की ओर आगाह भी कर रहे हैं तो कुछ विशेषज्ञ नई तरह की नौकरियों की बहार आने की उम्मीद भी जगा रहे हैं। लेकिन यहां जरूरत होगी नई तकनीक, नई प्रणाली और नए परिवेश के अनुसार अपडेट होने की।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ‘फ्यूचर ऑफ जॉब्स रिपोर्ट’ कहती है कि साल 2030 तक 37 करोड़ लोगों को अपने मौजूदा काम को बदलना पड़ सकता है। जो इस बदलाव को स्वीकार करेगा, वही मार्केट में टिकेगा। बाकी के सामने मुश्किलें बढ़ जाएंगी। यह रिपोर्ट यह भी कहती है कि अगले पांच साल तक अनेक कार्यस्थलों पर 50 फीसदी काम का ऑटोमेशन हो जाएगा। वहीं गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट कहती है कि अगले दो साल में ही दुनियाभर की कुल नौकरियों का 18 फीसदी हिस्सा एआई की वजह से विचलित होने लगेगा। ऐसी कई कंपनियां हैं, जिन्होंने इस पर बड़ी तेजी से अमल करना शुरू भी कर दिया है। मिसाल के तौर पर स्वीडिश रिटेल कंपनी क्लारना। उसके यहां एक एआई चैटबॉट असिस्टेंट अब 700 मानवीय कस्टमर सर्विस एजेंट्स का काम कर रहा है।

क्या करना होगा? वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट के मुताबिक आज भारत में प्रत्येक 10 में से केवल 3 कर्मचारियों को ही पर्याप्त ट्रेनिंग के अवसर उपलब्ध हैं, जबकि 2027 तक आज की तुलना में कम से कम दोगुने प्रतिशत कर्मचारियों की दरकार होगी। फोरम के अनुसार अगर बदलते हुए जॉब मार्केट में प्रासंगिक बने रहना है तो वर्कफोर्स के लिए पर्याप्त ट्रेनिंग के मौके उपलब्ध करवाना महत्वपूर्ण हो जाएगा। सरकारों की जिम्मेदारी नौकरियां उपलब्ध करवाने से भी ज्यादा इस तरह की ट्रेनिंग के मौके मुहैया करवाने की ज्यादा होगी।

    जॉब्स मार्केट में अगले 10 साल का अनुमान

 

खत्म हो सकते हैं ये 5 तरह की जॉब्स!

एआई और ऑटोमेशन के विकास से कई क्षेत्रों में जॉब्स कम हो सकते हैं। निकेता एवं गोल्डमैन सैक्स की दो अलग-अलग रिपोर्ट्स के अनुसार मुख्य रूप से इन पांच तरह की जॉब्स पर असर पड़ सकता है:

 

1. डेटा एंट्री क्लर्क:
एआई सिस्टम्स द्वारा डेटा एंट्री और प्रोसेसिंग का कार्य अधिक तेजी और सटीकता से किया जा सकता है। अगले 10 साल में शायद यह नौकरी कहीं दिखाई ना दे, खासकर विकसित देशों में।

2. कस्टमर सर्विस रिप्रेजेंटेटिव:
अगले 10 साल में कस्टमर सर्विस का काम करने वाले इंसानों की जरूरत नहीं रह जाएगी। चैटबॉट्स एवं वर्चुअल असिस्टेंट्स ही ये काम कर देंगे। विकसित देश इस तरफ बढ़ चुके हैं।

3. रिटेल वर्कर्स:
सेल्फ-चेकआउट मशीनों और ऑनलाइन शॉपिंग में बढ़ोतरी से रिटेल स्टोर में काम करने वालों की संख्या कम हो सकती है। इनमें जॉब्स खत्म तो नहीं होंगी, मगर काफी कमी आ सकती है।

4. टेलीमार्केटर्स:
एआई-आधारित कॉल सिस्टम्स और मार्केटिंग सॉफ्टवेयर द्वारा टेलीमार्केटिंग का काम किया जाना शुरू हो गया है। इससे इस तरह की जॉब भी पूरी तरह से खत्म हो सकती है।

5. प्रूफरीडर्स और ट्रांसलेटर्स:
एआई-आधारित भाषा प्रोसेसिंग टूल्स और ट्रांसलेशन सॉफ्टवेयर के उपयोग से अगले 10 साल में ऐसे जॉब्स जा सकते हैं, खासकर वहां जहां भाषा की गुणवत्ता मायने ना रखती हो।

 

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पैदा होंगे ये 5 तरह के नए जॉब्स…

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ‘फ्यूचर ऑफ जॉब्स रिपोर्ट’ के अनुसार एआई के क्षेत्र में विकास से कई नए प्रकार की जॉब्स उत्पन्न हो रहे हैं। अगले 10 साल में मुख्य रूप से ये जॉब्स लीड में रहेंगे:

 

1. एआई सॉफ्टवेयर डेवलपर:
एआई का उपयोग करने वाले सॉफ्टवेयर्स का मार्केट बढ़ेगा। लिहाजा, सामान्य सॉफ्टवेयर की बजाय एआई सॉफ्टवेयर डेवलप करने वाले डेवलपर्स की मांग बढ़ेगी।

2. साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट:
जब एआई का प्रभाव बढ़ेगा तो इसकी जरुरत क्म्प्युटर सिस्टम में सुरक्षा को भी बढ़ाना पड़ेगा। एआई सिस्टम्स में भी सुरक्षा होनी चाहिए। तो एआई से जुड़े साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट की मांग पैदा होगी।

3. एआई लर्निंग इंजीनियर:
एआई भले ही कितनी भी विकसित हो जाए, उसे नियंत्रित करने और मशीन लर्निंग एल्गोरिदम विकसित करने वाले इंजीनियर्स की मांग में इजाफा होगा।

4. एआई डेटा क्यूरेटर:
एआई सिस्टम्स के लिए उच्च गुणवत्ता वाला डेटा संकलित करने और उनका प्रबंधन करने वाले पेशेवरों की जरूरत होगी। तो इस क्षेत्र में मिडल लेवल की जॉब्स पैदा होंगी।

5. एआई ट्रेनर:
एआई सिस्टम्स अपने आप ट्रेंड नहीं होंगे। मार्केट की जरूरत के अनुसार उसे ट्रेंड करने और उसकी ट्रेनिंग को लगातार अपडेट करने वाले ट्रेनर्स की जरूरत होगी।

 

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एआई और जॉब्स मार्केट पर क्या कहते हैं बड़े एक्सपर्ट?

 

औसत लोगों की नौकरियां संकट में होंगी… सुंदर पिचाई
गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने हाल ही में सीबीएस 60 मिनट्स के साथ बातचीत करते हुए कहा है कि उनके चैटबॉट (जेमिनी) का मकसद मानव इंसानों को रिप्लेस करना नहीं है, बल्कि वे इसे इस तरह से विकसित कर रहे हैं, ताकि वह लेखकों की मदद कर सके। तो इससे उन लेखकों/अनुवादकों की जॉब्स जाने का कोई खतरा नहीं है, जो इसके जरिये खुद को समृद्ध बनाएंगे। लेकिन औसत लोगों की नौकरियों पर संकट आ सकता है।

 

बढ़ेगी जॉब क्रिएटिविटी… मार्क लिकाविलो
फोर्कास्ट काउंसिल मेंबर और एआई मामलों के जानकार मार्क लिकाविलो कहते हैं कि एआई से वे नौकरियां चली जाएंगी जिनमें एक जैसा काम होता है और जिनमें क्रिएटिविटी की जरूरत कम पड़ती है। इसका फायदा यह होगा कि इससे कर्मचारी अधिक सार्थक गतिविधियों पर फोकस कर सकेंगे। उदाहरण के लिए, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में एआई असेंबली प्रोसेस को ऑटोमेट कर सकती है और इससे कर्मचारियों को डिज़ाइन, क्वालिटी और प्रबंधन का कार्य करने का स्पेस मिल सकेगा।

 

आईटी जैसा होगा एआई का क्षेत्र… रोहित टंडन
डेलॉइट के मैनेजिंग डायरेक्टर (एआई) रोहित टंडन का कहना है कि एआई से डरने की जरूरत नहीं है। इसकी स्थिति आईटी सेक्टर जैसी होगी। जैसे आईटी की वजह से दुनियाभर में लाखों नई नौकरियां पैदा हुई हैं, वैसे ही एआई के साथ भी होने जा रहा है। आईटी की वजह से भी अनेक नौकरियां गईं तो इससे भी जाएंगी। यह पहली बार नहीं है, जब कोई नई तकनीक आई है और उससे नौकरियां जाने का खतरा पैदा हुआ है।

 

तकनीक को धीमा करने की जरूरत… स्टीव वोज़्नियाक
एपल के सह-संस्थापक स्टीव वोज़्नियाक ने सीएनएन के साथ साक्षात्कार में कहा कि वे एक तकनीक के तौर पर एआई को लेकर चिंतित नहीं हैं। चिंता केवल इस बात की है कि यह कहीं गलत हाथों में नहीं पड़ जाए और इसका इस्तेमाल वहां भी ना होने लग जाए, जहां जरूरत नहीं है। जहां एआई के बगैर काम चल सकता है, वहां इसके विकास को धीमा करने की आवश्यकता है, ताकि वहां की नौकरियां अगले कुछ साल तक तो बची रहें।

 

लैंग्वेज मॉडल ठीक नहीं, खा जाएगा नौकरियां… टिमनिट गेब्रू
डिसेंट्रलाइज्ड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंस्टीट्यूट (डीएआईआर) की संस्थापक और प्रमुख एआई एथिसिस्ट टिमनिट गेब्रू भी एआई सिस्टम की आलोचक रही हैं। फरवरी में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में दिए गए एक भाषण में उन्होंने कहा कि एआई के जरिये हर तरह का काम करना ठीक नहीं है। वे खासकर लैंग्वेज मॉडल की आलोचक हैं और उनका कहना है कि इससे बड़े पैमाने पर नौकरियां चली जाएंगी।